रविवार, 31 मार्च 2013
माँ ....
रिश्तेदारी जब, गर्त में ले जाती है
तब कही जाकर, माँ याद आती है,
दौर-ए-मुसीबत का मर्ज, खूब जानती है,
माँ बाज़ार जाकर, जेवर बेच आती है.......
हालातो से लड़ने का, हुनर देखिये
माँ अँधेरे में, दिया ढूंढ लाती है.......
कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:-
www.prabhatparwana.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें