बच्चो के भूखे पेट को, पहचान लेता है,
पिता एक रोटी हिस्सों में, बाँट देता है,
माँ बीमार, चून ख़तम, लकडियाँ गीली,
आज फिर नहीं जलूँगा, चूल्हा भांप लेता है .....
एहसान लेना ज़मीर को, गवारा नहीं लगता
मुफलिस एक चादर में, सर्द राते काट लेता है .....
चुल्लू भर पानी में, वो शख्स, डूब मर जाए,
अपने काम की खातिर, जो तलवे चाट लेता है .....
बुरे वक़्त से कहाँ तक, बच सकोगे आप,
आदमी ऊंट पर बैठा हो, कुत्ता काट लेता है .....
1 टिप्पणी:
प्रभात भाई इस कविता के लिए आभार!
बहुत ही संजीदा और मार्मिक कविता है यह.
मैं आपकी कविताओं और कार्य को दिल से सराहना करती हूँ. मैं आपकी कविताओं और कार्य से बहुत प्रभावित रही हूँ. मैं आरा, बिहार में रहती हूँ और यहाँ भी मैं यह कार्य करना चाहती हूँ. मैंने आपसे संपर्क करने की कोशिश भी की पर आपसे बात नहीं हो पायी, क्योंकि उस दिन आप 15 अगस्त के कार्यक्रमों में व्यस्त थे. यदि आपका सहयोग मिले तो मैं अपने संगठन के जरिये यहाँ के गरीबों की मदद करना चाहती हूँ. मैं गरीब और लाचार महिलाओं और बच्चों की मदद करना चाहती हूँ.
आपकी ही एक बहन
Neelam Sai Pandey
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