पूजा जिस जिस को मैंने, परवरदिगार की तरह,
हर उस शख्स ने मुझे देखा, गुनेहगार की तरह
दौलत भी क्या शय है, तब मालूम हुआ मुझको
जब अदालत गवाह सब बिक गए, अखबार की तरह......
जब अदालत गवाह सब बिक गए, अखबार की तरह......
रोज़ नए वादे करना, और रोज़ मुकर जाना
तुम भी पेश आ रहे हो, सरकार की तरह......
हर बार तुमसे उम्मीद, लगाता रहा ये दिल,
और तुम तोड़ती रही उम्मीद, हर बार की तरह......
तेरे ग़म की स्याही से, जब जब कुछ लिखा हमने
हर नज़र में आ गए हम, इश्तेहार की तरह .......
गुल-ओ-गुलशन से भर दिया, दामन मेरा एक पल
और फिर चले गए ठुकरा कर, किसी बहार की तरह ......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें