बारिश में जैसे जलता दीया ऐसे जला हूँ,
हर वक़्त, हर हालात, कसौटी पे खरा हूँ,
ये आंधियाँ रोकेंगी क्या अब मेरा रास्ता
बुजुर्गों की दुआओ को घर से लेके चला हूँ,
मिट्टी है कि तुम, पूरी दुनिया में छा गए,
तो क्या हुआ जो, हर किसी के दिल को भा गए
धर्म, पुन्य, तीर्थ सारे व्यर्थ हो गए
अश्क जो माँ बाप की,आँखों में गए
कवि प्रभात "परवाना"
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