लाख कोशिश करू मैं, दिक्कत कम नहीं होती
उस खुदा की भी मुझपे रहमत, कम नहीं होती
छोटी उम्र में इतना, तजुर्बा तो कमाया है
दिल नेक हो तो घर में, बरक्कत कम नहीं होती
जुदाई महज इश्क का, इम्तेहान लगता है
फासला बढ़ता जाता है, मोहब्बत कम नहीं होती
समंदर में नदियों के जैसी, बढती जाती है
माँ के हाथ के खाने में लज्जत, कम नहीं होती
खुदा के इश्क में रांझे सा, हाल है मेरा
पत्थर खाता जाता हूँ, इबादत कम नहीं होती
मेरे हौसले की बस, इतनी सी कहानी है
परिंदा पर से घायल है, पर हिम्मत कम नहीं होती
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