बुधवार, 6 मई 2015

परवाने की मोहब्बत नहीं देखी......


तुमने दिल की सूनी, सरहद नहीं देखी
होंठो पर कैद है जो, गफलत नहीं देखी
मेरे महबूब से सामना, नहीं हुआ तेरा
मतलब तूने अब तक, क़यामत नहीं देखी ......

लकीरे तक मिटा दी मैंने, तेरे नाम की
तूने प्यार देखा है, मेरी नफरत नहीं देखी......

फर्श से अर्श तक सब कुछ, उसका हो गया
जिसमे सफर में पैर की, थकावट नहीं देखी......

मुहं पे राम बगल में, छुरी रखते है साहब
आपने अभी शरीफो की, शराफत नहीं देखी......

क्या करोगे मेरी कहानी, जानकर यारो
किसी चिराग की आंधी से, बगावत नहीं देखी......

ज़िंदगी ढूंढते है पागल, अंजाम-ए इश्क़ में
शमा से परवाने की, मोहब्बत नहीं देखी......

खुद को काट-काट कर, बनाएं है रास्ते
मेरी शोहरत देखी है, मेरी मेहनत नहीं देखी ....


        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com



1 टिप्पणी:

Me ने कहा…

Nice Poem...

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