गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

गंगा किनारे वाले की डायरी : लकीरे (भाग -1 ) पुराने पन्ने...

गंगा किनारे वाले की डायरी : लकीरे (भाग -1 ) पुराने पन्ने...


कल रात दराज में कुछ, पुराने सीलन भरे पन्ने मिले
पन्ने क्या थे, मेरा अतीत था....

एक पल रुक के सोचा उन्हें छूना, ठीक भी होगा या नहीं
कहीं ऐसा ना हो किसी पन्ने से तुम, मुस्कुराते नज़र आओ
या किसी पन्ने पर तुम्हारी, झूठी नाराजगी दबी हुई हो 
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शायद किसी पन्ने पर उस किताब का नाम लिखा हो,
जिसकी अदला बदली के बहाने, हमारा रिश्ता परवान चढ़ा
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याद है उन बच्चो के नाम जो हमने, शादी से पहले सोचे थे
सब इन्ही कागजो की किसी कतरन में लिखे होंगे 
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कुछ और भी लिखा होगा इनमे, जिसे पढ़ने की हिम्मत अब नहीं है
इन्ही पन्नो में लिखी है वो कहानी जिसे, आगाज़ तो मिला पर अंजाम नहीं 
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इन पन्नो में जो सीलन है, वो दरअसल मेरे और तुम्हारे आंसू हैं
जिन्हे हम गंगा किनारे, गंगा माँ को सौंप आये थे 
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चलो आज और सोने देते हैं उन पन्नो को, अपने अतीत को, तुमको
हमारे आँसुओ को, और हर उस याद को जिसने हमें आज तक हम बना रखा है
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        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com

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