कांटो को सजा बिछा कर, बिस्तर बना लिया
लो हमने भी शहर-ए-ग़म में, घर बना लिया
दरिया चिढ़ाता था, जिन जिन बूंदों को कभी
उन सब बूंदों ने मिलकर, समंदर बना लिया...…
सबके सब रखते हो, संगतराषी का हुनर
लो हमने भी इस दिल को, पत्थर बना लिया...…
तेरे दो आँसुओ से बाज़ी, हार गए वरना
हुज़ूर जिसे चाहा उसे, अपना मुकद्दर बना लिया...…
किताब ए दोस्ती हर पन्ना, पढ़ लिया साहब
हमनें दुश्मनो को अपना, रहबर बना लिया ...…
लो हमने भी शहर-ए-ग़म में, घर बना लिया
दरिया चिढ़ाता था, जिन जिन बूंदों को कभी
उन सब बूंदों ने मिलकर, समंदर बना लिया...…
सबके सब रखते हो, संगतराषी का हुनर
लो हमने भी इस दिल को, पत्थर बना लिया...…
तेरे दो आँसुओ से बाज़ी, हार गए वरना
हुज़ूर जिसे चाहा उसे, अपना मुकद्दर बना लिया...…
किताब ए दोस्ती हर पन्ना, पढ़ लिया साहब
हमनें दुश्मनो को अपना, रहबर बना लिया ...…
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