रविवार, 10 जुलाई 2011

खुशी को गम है आज

इंसान होकर कुछ रहम तो कर जालिम,
मेरी नज़र से जमाने को नज़र कर जालिम
मुझसे ना सही तेरा गुरूर है तो,
खुदा ईश्वर अल्लाह से तो डर जालिम


कुछ जले थे चिराग कभी नूर के लिए,
खुद जले थे आप जिन हुज़ूर के लिए,
आज हमसफ़र है वो आप खुद ही देखिए,
जो चल पड़े थे साथ थोड़ी दूर के लिए


हालात ने विश्वास को हिला रखा है,
दोस्तो ने दुश्मन को मिला रखा है,
अभी ज़िंदा हू मैं ये गैर की दुआ है,
वरना अपनो ने तो मेरा कफ़न सिला रखा है

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Viry very nice yaar !

GIRISH JOSHI ने कहा…

bhai aapne sach me jhkm hare kar diye......wa wah wah....

SARITA ने कहा…

GAR NAJAR KI GUFTUGU HOTI KABHI, GAR OH RAAH, OH SAATH YAAD AAE KABHI ;, EK BAAR BAITHKE DEKHNA OH KAGAJ KI KASTI PAR, GILA NA HONE DENGE GAR ANDHI BHI AA JAE KABHI,... " NICE POEM."