शनिवार, 23 जुलाई 2011

मुझे अपनाने कोई गैर आया है......



मैं तो वो पत्ता हू जिसे हवा ने भगाया है,
बस एक मज़ाक हू, जिसे जमाने ने उड़ाया है
गैरो से वास्ता मै कैसे रख सकू?
मैं वो शक्स हू ,जिसे अपनो ने रुलाया है


पानी ना देखिए, आप मेरी आँख मे,
छलक गये है आसू ,जब जब हसाया है


जमाने भर की ग़लतिया, जैसे मुझ से ही हुई
खुदा ने भी मुझे, इस तरह सताया है


पहचान है मेरी, फिर भी ये प्रश्न है
क्यू भीड़ मे खुद, को अंजान पाया है


जला कर मेरी चिता, जब अपने चल दिए
तब मुझे अपनाने, कोई गैर आया है


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


2 टिप्‍पणियां:

ram purshottam kasture ने कहा…

bahut sunder. vastav me bhari mehanat ki hai
dnywad

SARITA ने कहा…

apnaya bas koi, gair paraya na dekho.. apnepan mein jio , jee jee ke mit jao.. mitna to hai ek din, pal pal mare kyu, duniya to chhodna hai ek din hamein koi chhod dia to gam kyun? andhere rahon mein bhule bhatke milte hai sabhi, ankho ki moti ko jo sajae palko mein apn to bas wohi apnahai, ba wohi to apna.