गुरुवार, 11 अगस्त 2011

आज महकता है मन मेरा...


आज खो गया हूँ मै रेत-पानी की तरह
पर महकता है मन मेरा रात-रानी की तरह


नासमझ है की मोल लगाती है वो
मुझे तोलती है लाभ हानि की तरह 


मार दो मुझे या दफ़न कर दो...
भूल ना जाना मुझे एक कहानी की तरह..


हाथ मलते रह जाओगे एक दिन दोस्तो
और फिसल जाउंगा मैं वक़्त और जवानी की तरह


प्रभात को फर्क नहीं किसी भी रात से
आज महकता है मन मेरा रात-रानी की तरह


प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना" 



1 टिप्पणी:

sarita ने कहा…

"DARD HAI, RAHEGA JINDA MERI KAFN MEIN BHI YE KHUDA , CHAHE USSE CHHUKE DEKHO, TU BHI TADAP UTHEGA"....poem mein yeh jo dard mehesoos hoti hai aapke likhne ki anokha andaaz bata te hai, KHUS RAHO, KALAM AAPKE CHALTA RAHE, DUA HAI MERI PRABHAT HAMESHA KHILTA RAHE,,..