शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

जिस दिन मेरी कलम बिकेगी........



सागर होती होगी दुनिया, एक पल में तर जाउंगा
ठान लिया  है  मन  में जो  कुछ,  मर कर  भी  कर  जाऊँगा
वादा मेरा इस दुनिया से, इस जग में जीने वालो से,
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, मै उस दिन मर जाऊँगा..... 

ना समझौता ना सुनवाई,  ना काफिर  की  तारीखे
कलम उठा कर शस्त्र बना कर, सीधा ही लड़ जाऊँगा..
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, मै उस दिन मर जाऊँगा...../.

मेरी शिक्षा मेरा धन है,जीवन है जो सब अर्पण है
खौले खून तो जेठ महीना, बहते आसू वो सावन है
परछाई में रहने वालो,मुझको पागल कहने वालो
कलम बना के अपनी मलहम, सब पीड़ा हर जाऊँगा
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, मै उस दिन मर जाऊँगा 
जिस दिन मेरी कलम बिकेगी, मै उस दिन मर जाऊँगा 


प्रभात  कुमार भारद्ववाज"परवाना"



3 टिप्‍पणियां:

SARITA ने कहा…

dunia ki thokkron ki jawab de di apne, girte girte bhi kalam tham rakha apne, khuda kare ki ye barse paglon ki tarha, deshki gaddaron ko udade aandhionki tarha.. aapke lekhan mein wo takat rahe bhara, jalim mahishasuron ko mare durgaa ki tarha. ..LOVELY POEM JAAN AAJATI HAI NIRASH PRANO MEIN..

संजय राणा ने कहा…

प्रिय प्रभात जी बहुत ही अच्छी कविता है आपकी !

बेनामी ने कहा…

कलम कवि की कभी न रूकती,स्याही कभी न चुकती है, जिस दिन कवि की मजबूरी हो तबाही तभी मचती है| कलम बिकने से पहले कवि की धडकन रूकती है ,
कीमत कलम की करने वालो की , सांसे तुरंत थमती है|