शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?


चांदनी के नूर का रुआब क्या कहू?
फिर तेरे हुस्न का शबाब क्या कहू?
ख़ुशी से कही मर ना जाऊ ऐ मेरे हुज़ूर,
तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?

तट की तरंग का सैलाब क्या कहू?
फ़कीर की दुआओं का हिसाब क्या कहू?
ख़ुशी से कही मर ना जाऊ ऐ मेरे हुज़ूर,
तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?

रात में जो देखा वो खुआब क्या कहू?
प्यार से दिया वो जवाब क्या कहू?
ख़ुशी से कही मर ना जाऊ ऐ मेरे हुज़ूर,
तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?

चांदनी पे मेघ का नकाब क्या कहू?
तेरा प्यार का जो पाया है खिताब क्या कहू?
ख़ुशी से कही मर ना जाऊ ऐ मेरे हुज़ूर,
तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?
  

                                       कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

मैंने चुन चुन के फूल तोड़ते माली देखे है......


आज फिर दुआओं के बाजार खाली देखे है,
लाज और शराफत के सब वर्क जाली देखे है,
किसके भरोसे पर पर बगीचा-ऐ-दिल छोड़ दू आखिर
मैंने चुन चुन के फूल तोड़ते माली देखे है......

कभी चिलमन को उठाकर देखना प्रिय, मेरे जज्बातों में किस कदर तुम ही तुम हो,
मैं तो भूल कर तुम्हे खुदा में खो जाता, मगर उस खुदा में भी दिखी बस तुम ही तुम हो...

आज तन्हाई का साया खोने लगा है,
हम जगे जगे है, कोई सोने लगा है,
सुलझे से मन में ये कैसी उलझन है दोस्त,
ये मुझे क्या होने लगा है, ये मुझे क्या होने लगा है

मेरी महफ़िल है और तुम घर से जाम लाये हो,
यहाँ बदनाम है सभी, तुम अपना नाम लाये हो,
ये छुपी छुपी हसी का राज भी कहो,
ऐ-दोस्त क्या कोई पैगाम लाये हो.

कह दो अब कोई मयस्सर ना करे चिराग-ऐ-मोहब्बत कही ख़ाक ना हो जाऊ इस इश्क की जली में.....



                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

वो शोले सी सुलगती रही, मैं आग सा जलता रहा..


हाल-ऐ-मोहब्बत कुछ इस तरह चलता रहा,
वो शोले सी सुलगती रही, मैं आग सा जलता रहा

करवटे बदल बदल, निहारे आईने,
उधर वो तड़पी रात भर, इधर मैं तड़पता रहा

अनजान में हो जान तो है ख़ास ही मजा
वो मुझे पाने को मचलती रही, मै उसमे समाने को मचलता रहा

हाल-ऐ-मोहब्बत कुछ इस तरह चलता रहा,
वो शोले सी सुलगती रही, मैं आग सा जलता रहा


                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 

सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

इजहार-ए-इश्क..

एक छोटी सी बात पर परिवार बदलते देखे है,
जरुरत पड़ी तो सब रिश्तेदार बदलते देखे है,
अब यकीन सा उठ चला, हर शख्स से "प्रभात"
मैंने अक्सर अपनों के किरदार बदलते देखे है..............

तीर कुछ इस कदर छोड़े उस बेवफा ने इश्क में
कि अब इजहार-ए-इश्क मैंने जख्मो से कर दिया.........

ज़माना कहता है की तुम्हारा लगाया इत्र लाजवाब है,
कौन समझाए दुनिया को हम उनसे मिलकर आते हैं...........

मेरा जीवन सच्ची गाथा, तेरा जीवन एक कहानी,
मेरा जीवन पानी जैसा, तेरा जीवन काला पानी

----कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


रविवार, 16 अक्टूबर 2011

वो दिल में रह कर दोस्ती की बात करती रही.

बस एक यही अदा उसकी मुझे बर्बाद करती रही,
वो दिल में रह कर दोस्ती की बात करती रही.
लबो को समझाया तो नजरो ने कह दिया,
चुप रहने की वो कोशिश नापाक करती रही,
उलझन उसके चेहरे की ब्याँ क्या करू?
कुछ पंखडी गुलाब से आजाद करती रही
इधर शर्म से कुछ गढ़ा सा मै रहा
उधर वो जमाने का लिहाज करती रही
पर ठगा सा रह गया मै उसके प्यार में
वो जाने किस गैर का हिसाब करती रही.
पहले जख्म नजरो से, दिल पे दे दिए.
फिर नमक लगा उन्हें, हलाल करती रही,
हाल-ए-जिंदगी है अब उसकी तरह
मेरी कब्र पर आकर मेरा इन्तजार करती रही .
मेरी कब्र पर आकर मेरा इन्तजार करती रही .
बस एक यही अदा उसकी मुझे बर्बाद करती रही,
वो दिल में रह कर दोस्ती की बात करती रही.


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"



शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

मै तेरी बेवफाई के सबूत तोड़ के आया हूँ

मत सोच मै दुनिया छोड़ के आया हूँ
मत सोच राह तेरी तरफ मोड़ के आया हूँ
देख ध्यान से उन टूटे कांचो की तरफ
मै तेरी बेवफाई के सबूत तोड़ के आया हूँ
जिस दिल पर तुने रच डाले थे, महल अनोखे प्यार के
कभी चाहत के टीले, कभी कंगूरे इकरार के
जरा देख तो मुड़ उन राहो पर, मै उन भवनों को ही फोड़ के आया हूँ
मै तेरी बेवफाई के सबूत तोड़ कर आया हूँ..........
दबा रखा था तुने मुझको एक अनजानी गहराई में
शय मात का खेल समेटा तुने अपनी ढाई में
कब्र खोद के देख ले जाना, ताबूत तोड़ कर आया हूँ
मै तेरी बेवफाई के सबूत तोड़ कर आया हूँ ..................
मै तेरी बेवफाई के सबूत तोड़ कर आया हूँ .......................


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

नए युग का प्रचार हूँ, नयी सदी का विचार हूँ

प्रफ्फुल हूँ, प्रचंड हूँ मै, तेज सिंह सा कभी तो, नीर सम मंद हूँ मै,
शांत चाँद सा कभी तो, सूर्य सम तेज हूँ मै,
नर्म पुष्प सा कभी तो, कांटो की भी सेज हूँ मै,
गगन सा विशाल हूँ, शतरंज की मै चाल हूँ
कृपाण का सा चीर हूँ, निष्पक्ष शूर वीर हूँ
गुनाह का मै काल हूँ, दर्द की मै ढाल हूँ
नए युग का प्रचार हूँ, नयी सदी का विचार हूँ
मत कहो की अचेत हूँ मै, श्वान सा सचेत हूँ मै
गरीब की पुकार हूँ, शत्र धारदार हूँ
चमकता स्वाभिमान हूँ, भारत का अभिमान हूँ
आंतंक का मै नाश हूँ, प्रशत्र आकाश हूँ
नवीन हूँ प्रवीण हूँ, राई सा महीन हूँ
बैठा हूँ चौराहे पर, पर ना समझो की मै दीन हूँ
बैठा हूँ चौराहे पर, पर ना समझो की मै दीन हूँ ......

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




रविवार, 9 अक्टूबर 2011

जीता हूँ जंग जब से, सब जानने लगे है....

जीता हूँ जंग जबसे, सब जानने लगे है,
कल तक थे जो पराये, अपना मानने लगे है...........

बहता था जो पसीना, वरदान मैंने माना,
मेहनत को ही सदा से भगवान् मैंने मैंने,
बढता रहा मै पथ पर ,पर आस के लगाकर
बैठे थे राह में कुछ, ताश से बिछाकर

पथ चिन्ह मेरे पथ, परिजन छानने लगे है,
जीता हूँ जंग जबसे, सब जानने लगे है..

राहे बहुत कठिन थी मै मानता था लेकिन,
कुछ करके ही रहूँगा मै जानता था लेकिन
आज पा लिया है उसको जो दूर था चमन में
अब थक गया हूँ यारो, शरण तो अमन में

अनजान कल के चेहरे पहचानने लगे है
जीता हूँ जंग जबसे, सब जानने लगे है,

कल तक थे जो पराये, अपना मानने लगे है...........
जीता हूँ जंग जबसे, सब जानने लगे है ..........

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




जीवन में रंग भर दो

जीवन में रंग भर दो, आँखों के तूल से तुम,
गम दिल के सब मिटा दो, हँसी के फूल से तुम

हारा था जिंदगी से, बस तुम ही एक किरण हो,
ना चाहिए विरासत, एक तुम ही मेरा धन हो
             दुनिया मेरी बसा दो, चरणों की धूल से तुम
           जीवन में रंग भर दो, आँखों के तूल से तुम,

हो तुम ही मेरी देवी, हो तुम ही मेरा जीवन
तुम्हारी खातिर कर दू, मै अपना सब कुछ अर्पण
                     कमियाँ मेरी भुला दो,जी खुद की भूल से तुम
                    जीवन में रंग भर दो, आँखों के तूल से तुम,

जीवन में रंग भर दो, आँखों के तूल से तुम,
गम दिल के सब मिटा दो, हँसी के फूल से तुम

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2011

कोई जिंदगी थी, जो अब नहीं बची थी...

शहर से थोड़ी दूर मेरा आशियाना था, किसी काम से मुझे नजदीक बस्ती में जाना था.
अनजान से डर से मै डर रहा था, भीड़ भाड़ वाली सड़क पार कर रहा था
जाने कहा लोग भाग रहा थे, आधे सोये सोये थे, आधे जाग रहे थे
कुछ किसी अजीब भ्रम में पल रहे थे, कुछ अभी नए साँचो में ढल रहे थे,
सब के हाव भाव पढ़ रहा था, चलते चलते रेलवे फाटक पार रहा था.
यहाँ चीत्कार मचा थी, हाहाकार मची थी,
शायद कोई जिंदगी थी, जो अब नहीं बची थी,
कुछ आँख फेरे थे, कुछ देखकर अनदेखे थे
बीस तीस छड़े थे, जो पास खड़े थे
दो चार औरते, जोर जोर से चीख रही थी,
देख कर पटरी बार बार, आँखे मीच रही थी
मेरे बस्ती जाने की याद घुटती गयी
मै स्तब्ध खड़ा रहा, वहा भीड़ जुटती गयी,
पास आया पटरी के कुछ कदम चलकर
रुका और गुस्साया लोगो की बात सुनकर
लोगो में चर्चा थी, ये हिन्दू है मुसलमान है,
कोई कहता सिख कोई पठान है,
मै गया पटरी पर, निहारता रहा एक टक
कोई 20 -22 का रहा होगा, रेल की चपेट में आ गया होगा
लगभग आधा शरीर ही बचा था,आधा रेल के साथ ही जा चुका था
कुछ निरिक्षण के बाद मुह खोला, था मै गुस्साया पर शान्ति से बोला
अरे ये जो मौन है, मै जानता हूँ कौन है
अरे समाज के ठेकेदारों, ये मेरा धक्के खाता, पैदल चलता,
कभी ऊपर कभी नीचे वालो का सताया हुआ,
रोटी कम, गम ज्यादा खाया हुआ हिन्दुतान है,
और रही बात धर्म की, तो ये ना हिन्दू है ना मुसलमान है ,
ना सिख है ना पठान है, अरे ध्यान से देखो
ये हुबहू वैसा ही है जैसा कोई और इंसान है
जैसा कोई और इंसान है, जैसा कोई और इंसान है,

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"





सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

इबादत की इजाजत दे दो

आज भी जहन में महफूस है तेरी तरकश के तीर,
तेरी हर नापाक हरकत से निगाहों से बही है पीड़
क्या तालीम तेरी तुझको बना बैठी है आज
तेरे बेशुमार मकानों में, एक नहीं है नीड़

हुस्न की महफ़िल में जिनका बोलबाला मिला
तसल्ली से परखा, तो दिल काला मिला
और तन्हा नाजुक से, होठो को सी के बैठे थे जो,
इस प्रभात की अँधेरी जिंदगी को उन्ही से उजाला मिला...



खुदा खुद दफ़न की कगार पर है.क्या?
क्यों चाँद जल रहा है सूरज से तेज आज.....

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




मेरी वो कसम वफ़ा की टूट जाएगी.....

तू हमसफ़र बनी तो तन्हाई रूठ जाएगी 
मेरी वो कसम वफ़ा की टूट जाएगी
जिस कलाई को थाम सालो बैठा रहा
वो कलाई तन्हाई की छूट जाएगी

देखो कितनी खुश है वो मेरे आगोश में
बिछड़  के मुझसे, गमो  में डूब जाएगी

गश्त खा कर गिर गया ये सोच परवाना
बेचारी जिंदगी से लगभग ऊब जाएगी

तू हमसफ़र बनी तो तन्हाई रूठ जाएगी 
मेरी वो कसम वफ़ा की टूट जाएगी.....

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"




रविवार, 2 अक्टूबर 2011

कभी फुर्सत में बैठोगे तो बताऊंगा........

कभी फुर्सत में बैठोगे  तो बताऊंगा........
तुम्हारे ख्वाब की लड़ियो में कैसे रात कटती है.....
कभी जो फेर ली आँखे तो मर जाऊँगा
तुम्हारे ख्वाब की लड़ियो में कैसे आँख बहतीं  हैं .........

मै जो हूँ अब तलक जिन्दा मेहरबानी  है
दिलो को काटने वाली, वो बाते रात कहती है
कभी फुर्सत में बैठोगे  तो बताऊंगा........
तुम्हारे ख्वाब की लड़ियो में कैसे रात कटती है.....

मेरे सीने में भी दिल है कसम खाने को
कोई हो ना हो यारो, जुदाई साथ रहती है 
कभी फुर्सत में बैठोगे  तो बताऊंगा........
तुम्हारे ख्वाब की लड़ियो में कैसे रात कटती है.....

प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"