आप ही कीजिये, मंदिर मस्जिद में सजदा
हमने मैकदे के पास ही, घर बना लिया .....
औरो से कुछ हटकर, उसूल है हमारा,
जहा मैकदा देखा, वही सर झुका लिया .....
मरीज-ए-इश्क- ने, क्या खूब मर्ज निकाला
हुस्न को छोड़कर, मय से दिल लगा लिया .....
अंगूर की जवानी से, कुछ यू सजा मैकदा
शेख जी ने मैकदे को, जन्नत बता दिया .....
दंगो की आग में, जल गया शहर सारा
कुछ रिंदो ने मिलकर ,मैकदा बचा लिया .....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें