हैवान बन गया है, इंसान इस कदर
इंसानियत नज़र आती है, सहमी-सहमी,
सन्नाटो से पूछिए, उस रात का मंजर,
हर चीख नज़र आती है, सहमी-सहमी,
निकल पड़े है लोग, बेख़ौफ़ से बनकर
पर भीड़ नज़र आती है, सहमी-सहमी,
गवाहों की आँख में, आहिस्ते से देखिये
हर नजर नज़र आती है, सहमी-सहमी,
सजदो पे बंदिशे, मंदिरों में ताले,
अब अजान नज़र आती है, सहमी-सहमी,
महफूज़ नहीं वो, जो घर से निकल गया,
ये दहलीज़ नज़र आती है, सहमी-सहमी
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