तू हमसफ़र बनी तो तन्हाई रूठ जाएगी
मेरी वो कसम वफ़ा की टूट जाएगी
जिस कलाई को थाम सालो बैठा रहा
वो कलाई तन्हाई की छूट जाएगी
देखो कितनी खुश है वो मेरे आगोश में
बिछड़ के मुझसे, गमो में डूब जाएगी
गश्त खा कर गिर गया ये सोच परवाना
बेचारी जिंदगी से लगभग ऊब जाएगी
तू हमसफ़र बनी तो तन्हाई रूठ जाएगी
मेरी वो कसम वफ़ा की टूट जाएगी.....
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
2 टिप्पणियां:
very very very veryyyyyyy
nice.
wonderful poem
Kya Baat Hai Janab... aapko toh unke dil ka haal bhi pata hai
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