हाल-ऐ-मोहब्बत कुछ इस तरह चलता रहा,
वो शोले सी सुलगती रही, मैं आग सा जलता रहा
करवटे बदल बदल, निहारे आईने,
उधर वो तड़पी रात भर, इधर मैं तड़पता रहा
अनजान में हो जान तो है ख़ास ही मजा
वो मुझे पाने को मचलती रही, मै उसमे समाने को मचलता रहा
हाल-ऐ-मोहब्बत कुछ इस तरह चलता रहा,
वो शोले सी सुलगती रही, मैं आग सा जलता रहा
कवि प्रभात "परवाना"
वो शोले सी सुलगती रही, मैं आग सा जलता रहा
करवटे बदल बदल, निहारे आईने,
उधर वो तड़पी रात भर, इधर मैं तड़पता रहा
अनजान में हो जान तो है ख़ास ही मजा
वो मुझे पाने को मचलती रही, मै उसमे समाने को मचलता रहा
हाल-ऐ-मोहब्बत कुछ इस तरह चलता रहा,
वो शोले सी सुलगती रही, मैं आग सा जलता रहा
कवि प्रभात "परवाना"
2 टिप्पणियां:
Kya Baat Hai.... dard ko ukerne ka accha prayas kiya hai aapne Janab
wahh..
lajawab...
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