शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?


चांदनी के नूर का रुआब क्या कहू?
फिर तेरे हुस्न का शबाब क्या कहू?
ख़ुशी से कही मर ना जाऊ ऐ मेरे हुज़ूर,
तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?

तट की तरंग का सैलाब क्या कहू?
फ़कीर की दुआओं का हिसाब क्या कहू?
ख़ुशी से कही मर ना जाऊ ऐ मेरे हुज़ूर,
तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?

रात में जो देखा वो खुआब क्या कहू?
प्यार से दिया वो जवाब क्या कहू?
ख़ुशी से कही मर ना जाऊ ऐ मेरे हुज़ूर,
तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?

चांदनी पे मेघ का नकाब क्या कहू?
तेरा प्यार का जो पाया है खिताब क्या कहू?
ख़ुशी से कही मर ना जाऊ ऐ मेरे हुज़ूर,
तेरे हाथ में जो देखा ये गुलाब क्या कहू?
  

                                       कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




4 टिप्‍पणियां:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

ख़ूबसूरत ब्लॉग , सुंदर तस्वीरों और अच्छी क़ाफ़ियाबंदी के लिए बधाई !


शुभकामनाओं सहित …

बेनामी ने कहा…

ati sunder jiiiiiiiiiiiiiiiii

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

bahut hi sundar..

Rahul Yadav ने कहा…

Yaar shabd kam pad jate hain.. tareef karne k liye.... la jawab ho bhai