शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

तितलियो को घर में पाला नहीं जाता .........


जो तूफानों से खेलते है उन्हें, हवाओं से डर नहीं लगता
जो समंदर में पलते हो उन्हें घटाओ से डर नहीं लगता,
हर ठोकर से कुछ सीख कर गुजरा हूँ मैं,
अब मुझे मार कर सिखाने वाले रहनुमाओं से डर नहीं लगता
अब मुझे मार कर सिखाने वाले रहनुमाओं से डर नहीं लगता........

जश्न-ए-इजहार क्या ख़ाक होता जब बात कुछ बढ़ी नहीं,
कभी नशे में वो रहे, कभी नशे में हम रहे...........

एक कतरा बन कर समंदर पर सवार हूँ तेरे लिए,
सुना है- "डूबते को तिनके का सहारा बहुत होता है".........


मेरी फकीरी मेरे किरदार की खता है यारो,
मेरी फकीरी मेरे किरदार की खता है यारो,
"मेरी जिंदगी नहीं, जिंदादिली ने ठगा है मुझे......."

पत्थरो से रस निकाला नहीं जाता,
फूलो पर वजन डाला नहीं जाता,
घर के चौबारे तक ही रहे, तो खूब जँचती है,
तितलियो को घर में पाला नहीं जाता
तितलियो को घर में पाला नहीं जाता .........



                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

प्यासे ही रह जाते है मय पिलाने वाले......


आये दिन जो देते है ज़माने वाले,
वो हर जख्म नहीं होते दिखाने वाले,
यकीन ना हो तो कभी घर में ध्यान में देना,
खुद भूखे रह जाते है, तुमको खिलाने वाले.............

कभी साथी नहीं मिलता, कभी साकी नहीं मिलता,
और प्यासे ही रह जाते है, मय को पिलाने वाले......

दरियादिली मेरी जो समझी, तो लगभग टूट जाओगे,
कैसे तन्हा रह जाते है, किसी को मिलाने वाले........

इबादत का हर दस्तूर यही बयाँ करता है सनम,
खुद लाश बन कर घूमते है, मुर्दे जिलाने वाले............

जिस दिन भी निखारेंगे, हम खुद को दिलनशी,
फिर देखते ही रह जाएंगे, जुल्फे हिलाने वाले............

उनकी अजान भी, क्या रंग लायी है आज,
लो रस्ता भटक गए है मंजिल बताने वाले..........

बंद कमरों का मंजर सिर्फ आइनों ने देखा है,
घुट घुट रुक कर रोते है, खुलकर हँसाने वाले...........

मेरी लाश और चिता पर नज़रे कड़ी रखना,
कहीं हाथ ना जला बैठे, मुझको जलाने वाले
कही हाथ ना जला बैठे, मुझको जलाने वाले..............



                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




बुधवार, 21 दिसंबर 2011

नशे में जमाना , ज़माने में हम भी .........


नशे में जमाना , ज़माने में हम भी,
कुछ इल्जाम हम पर भी आने दो ,

जो बेखबर है इस नशे से और नशे की दुनिया से ,
मत रोको उसे, मैखाने से दूर जाने दो ,

अंगूर की बेटी पक कर तैयार खड़ी है साकी,
जरा उसे पैमाने में सज जाने दो ,

सुना है सर्द हवाए , ईमान बदल देती है ,
एक झोका सनम , हमें भी खाने दो ,

उसका एक आंसू मुझे, उसके पास ला देगा ,
हटो यारो मुझे उसे, एक बार रुलाने दो ,

बहुत गुरूर है उसे अपनी एक एक अदा पे
आज मौका है, जरा मुझे भी आजमाने दो,

नशे में जमाना , ज़माने में हम भी ,
कुछ इल्जाम हम पर भी आने दो ...........

-------------------------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


रविवार, 18 दिसंबर 2011

बहुत याद आओगे तुम..........


एक दिन मुझे भूल जाओगे तुम,
कही दूर नजरो से चले जाओगे तुम,
लब्ज मेरे ना बयां कर सकेंगे कहानी,
कसम से बहुत याद आओगे तुम............

आज रोती हूँ तो हँसा लेते हो झटपट से,
कल पहरों मुझे तन्हा रुलाओगे तुम.......

भिगोने को मेरा पल्लू, तेरी यादे है आँखों में,
मेरी हर ख़ुशी हर ग़म में छलक जाओगे तुम..............

तेरे प्यार की बारिश में, देखो तर-बतर हूँ मैं
कल यही एक एक बूँद को मुझे तरसाओगे तुम..............

कटी पतंग सी अधर में, ही रह जाउंगी मैं सनम,
जब दूर जाकर कहीं मुझे आजमाओगे तुम..................

चादर ओढ़ लम्हों की, सुनहरे साथ बीते जो,
हाय! मर ना जाऊ कही? कितना तडपाओगे तुम?..............

एक सवाल होगा बस यही, कभी खुद से, खुदा से भी,
रंग भरने को जीवन में, क्या कभी लौट पाओगे तुम?
रंग भरने को जीवन में, क्या कभी लौट पाओगे तुम?



                                  कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

फिर जलेगा कोई परवाना, तेरी महफ़िल सजाने के लिए......


दुप्पटे का इशारा है क्या साहिल पास आने के लिए,
फिर जलेगा कोई परवाना, तेरी महफ़िल सजाने के लिए......

ना नाम दू जादूगरी तो क्या, कहू इस अदा को
बेकरार है हुजूम, तुझसे नजरे मिलाने के लिए..........

अपने हुस्न को शमशीर बनाना, बेकार है तेरा,
हम तो पहले ही खड़े है, सब कुछ लुटाने के लिए..........

घुला घुला सा है जहर, तेरे शहर की फिजाओं में,
राज़ी कोई फिर भी नहीं, तुझसे दूर जाने के लिए ........

शबनमो के पहरे ने भिगो दिया कफ़न मेरा,
कोई दूंढ़ लाओ उसकी नज़र, मुझको जलाने के लिए..........

-----------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


रविवार, 11 दिसंबर 2011

नज़र क्यों मिलाई थी आपने.....


इनकार ही था तो नज़र क्यों मिलाई थी आपने,
इकरार ही था तो नज़र क्यों चुराई थी आपने,

बस एक नज़र में दिल में अरमान दे दिया,
दिल के खाली कमरे को मेहमान दे दिया

नादान से दिल पर बिजली क्यों गिराई थी आपने,
इनकार ही था तो नज़र क्यों मिलाई थी आपने.

घायल हूँ दर्द लेकर अब इलाज कीजिये,
मेरे हर एक जख्म का हिसाब का हिसाब दीजिये

लेकर फिजा का बहाना, जुल्फ क्यों हिलाई थी अपने,
इनकार ही था तो नज़र क्यों मिलाई थी आपने....

इनकार ही था तो नज़र क्यों मिलाई थी आपने,
इकरार ही था तो नज़र क्यों चुराई थी आपने,


                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




हाज़िर है ये दीवाना,...


फेर है साहिल की आँखों का, हाज़िर है ये दीवाना,
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना.
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना........

जग को भूला बिसरा कह तेरी राहो पर आया था,
तीर-ए-नज़र ने देख जरा क्या जुल्म जिगर पर ढाया था,

टुकड़े टुकड़े हो गया दिल अब कौन भरेगा हरजाना..
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना........


सलवट बन कर चादर की, रातो में मुझे सताती है,
करवट बन कर पागल सी,ख्वाबो से मुझे जगाती है.

जीने की अब दुआ ना करना, मंजिल है मेरी मरजाना
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना........

फेर है साहिल की आँखों का, हाज़िर है ये दीवाना,
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना.
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना........

       
                                   कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है....


एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है,

अपनी मंजिल का जिद्दी, साहिल का जिद्दी,
कभी आगाज का जिद्दी, कभी अंजाम का जिद्दी,
मुझे परेशां करता है, मुझे पर चिल्लाता है,
ना खुद सोता है, ना मुझे सुलाता है,
किसी कशमकश में है, किसी उलझन में है,
कितनी आतुरता है उसमे, वो वक़्त से अनबन में है,

देर है हालात की, वो मुझसे ऐठा है,
एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है,

शायद वही है जो मुझे जिंदा रखता है,
मेरी हर हार पर मुझे शर्मिंदा रखता है,
कहने को लब्ज भी नहीं जानता है वो,
पर बिना कहे भी नहीं मानता है वो
मै रुकू तो मुझे नकेलता है हुज़ूर,
थक जाऊ तो मुझे धकेलता है हुज़ूर ........

हार ना जानू मै, मुझसे ये हर पल कहता है,
एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है
एक जिद्दी बच्चा मेरे अंदर बैठा है..........

                                     कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 
    

  

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

नकाब पर नकाब लेकर चलता है आदमी,


ना जाने कितने रंग बदलता है आदमी,
नकाब पर नकाब लेकर चलता है आदमी,
नकार जीवन की हर सच्चाई को,
ना जाने किस भ्रम में पलता है आदमी........

जो भूलकर खुदको बड़ा बनाते है उसे,
हद्द है उस माँ बाप तक को छलता है आदमी........

सीली सीली आँखे हर चौराहे पर निहारती है उसे,
पर हाय निष्ठुर कहा पिघलता है आदमी......

नहीं रुलाती उसे कभी अपनी फटी हुई झोली,
खुद अपनों की तरक्की से जलता है आदमी.........

तरक्की कुछ इस कदर कर गया है "प्रभात"
की अब हैवान की शक्ल में ढलता है आदमी.............



                                   कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 



रविवार, 4 दिसंबर 2011

सब कुछ बदला बदला नज़र आता है...........


ये तेरी आँखों का नशा है, या मेरी मय की गुस्ताख़ी,
मुझे अपना ईमान कुछ, बदला बदला सा नज़र आता है........

कभी इस कदर ना गिरे मेरे ख्यालात, तेरे मैखाने में,
आज मुझे ये जाम कुछ, बदला बदला सा नज़र आता है.......

शराब और शबाब का, मेल ही कुछ ऐसा है "प्रभात"
की हर इंसान कुछ बदला बदला सा नज़र आता है...........

मेरे हालात गवाह है, मेरी दुआ नाकबूल हुई,
मुझे मेरा भगवान् कुछ, बदला बदला, सा नज़र आता है........

हाथो में खंजर लेकर खड़े है सभी, सरे-आम चौराहों पर,
क्या दिवाली, क्या रमजान सब कुछ, बदला बदला नज़र आता है
क्या दिवाली, क्या रमजान सब कुछ बदला बदला नज़र आता है...........

                            
                                    कवि प्रभात "परवाना"
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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

एक नहीं हज़ारो किरदार मरते है....


एक नहीं हज़ारो किरदार मरते है,
जब कभी किसी घड़ी में कलाकार मरते है,

तन्हाई, बेबसी का सबब लेकर जीती है कलमे,
जब कभी
कहीं रचनाकार मरते है

साज, सुर, तराने बनकर बेगाने सिसक कर तरसते है,
या खुदा दे कर दर्द जब कभी फनकार मरते है,

तूलिका टूट कर बिखर जाती है, रंग उड़ जाते है पटल से,
जन्नत के सफ़र को जब कभी चित्रकार चलते है,

याद आती है, दादी की उंगलिया,हामिद और ईदगाह,
जब मेरे आसपास जब कहीं कहानीकार मरते है
जब मेरे आसपास जब
कहीं कहानीकार मरते है..........

एक नहीं हज़ारो किरदार मरते है,
जब कभी किसी घड़ी में कलाकार मरते है
जब कभी किसी घड़ी में कलाकार मरते है.................


                                    कवि प्रभात "परवाना"
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गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

पाकर अपार शोहरत, मैं तन्हा ही रहा.....


हारकर अपने जीवन की शाम कर रहा हूँ,
कुछ थका थका हूँ यारो, आराम कर रहा हूँ,

बेदिल होकर बसर है कई काफिर इस जहाँ में,
खुद अपनी नज़र में गिर रहा हूँ ऐसा काम कर रहा हूँ,

गूजती है सिसकियाँ, दीवारों से सुनो,
रोकर जिंदादिली को यू, बदनाम कर रहा हूँ,

कई मैखानो में दफ्न है, बुझदिली के निशाँ.
अपनी जिंदगी को बेनामी का, जाम कर रहा हूँ,

पाकर अपार शोहरत, मैं तन्हा ही रहा
अपने वजूद को जलाकर गुमनाम कर रहा हूँ,

आगाज-ए-मोहब्बत उसने बेवफाई से किया,
मैं मिटाकर अपनी हस्ती को अंजाम कर रहा हूँ
मैं मिटाकर अपनी हस्ती को अंजाम कर रहा हूँ...............


                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




एक तमाशा बना फिरता हूँ मैं, गली गली यारो....


जब मेरा सनम मेरे पास होता है,
मुझे हुबहू खुदा का एहसास होता है,
ये दुनिया बेनूर तारों सी चमकती है,
और आसमां के चाँद सा वो ख़ास होता है.........

बेदखल कर दो मुझे रोता, मगर जानो,
बहते आसुओ के बीच वो, मुस्कान होता है,

क्या आगाज समझोगे, क्या अंजाम जानोगे,
मेरा दायरा-ए-मोहब्बत, पूरा आसमान होता है,

अक्सर हुजूम मद में, देता है मुझे ताने,
और जब खुद पर बीतती है, तब हैरान होता है,

एक तमाशा बना फिरता हूँ मैं, गली गली यारो,
क्यूंकि हर पागल आशिक का यही अंजाम होता है
क्यूंकि हर पागल आशिक का यही अंजाम होता है.................


                                    कवि प्रभात "परवाना"
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