गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

मेरी नफरत का समंदर भी देख


प्यार की नदियाँ देखी तूने,
मेरी नफरत का समंदर भी देख
चल अल्फाज़ से एक कदम आगे,
जलते परवाने का मंजर भी देख

पर्दा हट गया औकात से, जब चला गया सावन
तनहा तरस रहा हूँ मैं , मुझे बंजर भी देख

जर्जर हो गया हूँ मैं, पर तेरी शमशीर से नहीं,
सीने में दफ्न है सदियो से,वो खंजर भी देख

-------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 








3 टिप्‍पणियां:

kuldeep ने कहा…

bhut khub.......

चन्द्रकांत दीक्षित ने कहा…

तनहा तरस रहा हूँ मैं मुझे बंजर भी देख

बहुत बढ़िया...दिल को छू गया,

ashuman ने कहा…

बहुत बढ़िया..