प्यार की नदियाँ देखी तूने,
मेरी नफरत का समंदर भी देख
चल अल्फाज़ से एक कदम आगे,
जलते परवाने का मंजर भी देख
पर्दा हट गया औकात से, जब चला गया सावन
तनहा तरस रहा हूँ मैं , मुझे बंजर भी देख
जर्जर हो गया हूँ मैं, पर तेरी शमशीर से नहीं,
सीने में दफ्न है सदियो से,वो खंजर भी देख
-------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
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3 टिप्पणियां:
bhut khub.......
तनहा तरस रहा हूँ मैं मुझे बंजर भी देख
बहुत बढ़िया...दिल को छू गया,
बहुत बढ़िया..
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