रविवार, 17 जून 2012

एक जिस्म पर कई किरदार देखिये .....



एक नहीं हुज़ूर, सौ बार देखिये'
एक जिस्म पर कई, किरदार देखिये
मुनाफा खूब हो भी, तो क्यों ना हो 
गर्म है नकाब का, बाज़ार देखिये ......

सियासत, आप खुद ही जान लोगे
चोर को बना के पहरेदार देखिये.....

वफ़ा, प्यार, दोस्ती, मैं सब निभाता रहा 
और मैं ही बन गया हूँ गुनेहगार देखिये........

बुजुर्गो की निशानी नीलाम हो रही है,
मुझ पर यकीं नहीं,  इश्तेहार देखिये........

बेटी बेच आया बाप, दो रोटी के वास्ते 
खबर पक्की है साहब, अखबार देखिये.........

---------------------------------कवि  प्रभात "परवाना"

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Sir ji i am realy impressed you.
C.P.Mishra
Baheri.

बेनामी ने कहा…

i like this

Unknown ने कहा…

this was something really awesome i have read after a long time.
i'm a beginner but i wish i could ever write things like u...
-aaryan
http://draaryantiwari.blogspot.in/