बुधवार, 22 अगस्त 2012

नज़र कोई अपना नहीं आता.......



बुलंदी से गिरा, भीड़ में जा मिला,
भीड़ में नज़र कोई अपना नहीं आता....

एक रोज़ गौर से ऐसी मुफलिसी देखी,
कि उस रात से मुझे कोई सपना नहीं आता....

अमीरे-शहर खुद को वो लोग कहने लगे
जिन्हें ठीक से तन को ढंकना नहीं आता .........

वापस ले लो अपनी दुआए ज़माने वालो,
मुझे एहसान किसी का रखना  नहीं आता........


        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com


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