बुधवार, 8 अगस्त 2012

मुझे भी ज़माने सा कर दे....


मेरे वजूद को किसी कत्लखाने सा कर दे,
ए-खुदा मुझे भी ज़माने सा कर दे....

ख़ौफ़ सुगबुगाहट सिसकियाँ और वीरान मंज़र
मुझे किसी मरघट के शामियाने सा कर दे .......

यूँ तो नसीब ना होंगे उनके लब कभी
करामात कर एसी मुझे पैमाने सा कर दे .......

रिंदो की बस्ती मे कर दे बसर मेरा
या खुदा मुझे किसी मैखाने सा कर दे........

सुना है बहुत हसीन मौत होती है प्यार मे
सब छोड़ चल, मुझे किसी दीवाने सा कर दे..........


        कवि प्रभात "परवाना"
 वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com



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