एक नहीं हज़ारो किरदार मरते है,
जब कभी किसी घड़ी में कलाकार मरते है,
तन्हाई, बेबसी का सबब लेकर जीती है कलमे,
जब कभी कहीं रचनाकार मरते है
साज, सुर, तराने बनकर बेगाने सिसक कर तरसते है,
या खुदा दे कर दर्द जब कभी फनकार मरते है,
तूलिका टूट कर बिखर जाती है, रंग उड़ जाते है पटल से,
जन्नत के सफ़र को जब कभी चित्रकार चलते है,
याद आती है, दादी की उंगलिया,हामिद और ईदगाह,
जब मेरे आसपास जब कहीं कहानीकार मरते है
जब मेरे आसपास जब कहीं कहानीकार मरते है..........
एक नहीं हज़ारो किरदार मरते है,
जब कभी किसी घड़ी में कलाकार मरते है
जब कभी किसी घड़ी में कलाकार मरते है.................
कवि प्रभात "परवाना"
3 टिप्पणियां:
prabhat ji ... Bahut hi sundar prastuti.
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मन के भाव बांटने के लिए आभार !
अच्छी अभिव्यक्ति !
bahut he sunder sir ji...
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