रविवार, 11 दिसंबर 2011

हाज़िर है ये दीवाना,...


फेर है साहिल की आँखों का, हाज़िर है ये दीवाना,
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना.
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना........

जग को भूला बिसरा कह तेरी राहो पर आया था,
तीर-ए-नज़र ने देख जरा क्या जुल्म जिगर पर ढाया था,

टुकड़े टुकड़े हो गया दिल अब कौन भरेगा हरजाना..
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना........


सलवट बन कर चादर की, रातो में मुझे सताती है,
करवट बन कर पागल सी,ख्वाबो से मुझे जगाती है.

जीने की अब दुआ ना करना, मंजिल है मेरी मरजाना
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना........

फेर है साहिल की आँखों का, हाज़िर है ये दीवाना,
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना.
दिखला अपना शम्मापन, तैयार खड़ा है परवाना........

       
                                   कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 




2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Maad Bhare Jaam Se Dar Lagta Hai,,,
Payar Ke Naam Se Dar Lagta Hai,,
Jishka Aagaj Choori Choori ho,,,
Ushke Aanjam se Dar Lagta hai,,,

बेनामी ने कहा…

Maad Bhare Jaam Se Dar Lagta Hai,,,
Payar Ke Naam Se Dar Lagta Hai,,
Jishka Aagaj Choori Choori ho,,,
Ushke Aanjam se Dar Lagta hai,,,