--------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ गुरुवार, 29 मार्च 2012
एक करोड़ पचास लाख लोग बेरोजगार हो गए.....
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बुधवार, 28 मार्च 2012
नंगे पैरो चला परवाना......
खता भी खुद ही करते थे,वफ़ा भी खुद ही करते थे,
कभी वो रूठ कर रोये, कभी मैं रूठ कर रोया
एक तरफा प्यार का सुनो, इल्जाम ना देना
कभी वो टूट कर रोये, कभी मैं टूट कर रोया........
नंगे पैरो चला परवाना ,जब राह-ए-इश्क में,
कभी छाले फूट कर रोये, कभी मैं फूट कर रोया
कभी छाले फूट कर रोये, कभी मैं फूट कर रोया.......
-------------------------------प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
कभी वो रूठ कर रोये, कभी मैं रूठ कर रोया
एक तरफा प्यार का सुनो, इल्जाम ना देना
कभी वो टूट कर रोये, कभी मैं टूट कर रोया........
नंगे पैरो चला परवाना ,जब राह-ए-इश्क में,
कभी छाले फूट कर रोये, कभी मैं फूट कर रोया
कभी छाले फूट कर रोये, कभी मैं फूट कर रोया.......
-------------------------------प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
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रविवार, 18 मार्च 2012
तारीफ-ए-कातिल........
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शुक्रवार, 16 मार्च 2012
अंजुमन-ए-दिल ......
गेसुओ को उनके, सजाने लगे है हम,
आईने निहार कर, शर्माने लगे है हम,
तन्हाइयो से निकल, उनके दिल में बस गयें
अरे अब जाकर कही, ठिकाने लगे है हम
जूनून-ए-मोहब्बत, पूरी कायनात ने देखा,
जख्म खा कर भी, मुस्कुराने लगे है हम,
अल्फाज़ के जज्बात, कोई जान ना पाया
आब-ए-चश्म भर कर आँख में, दिखाने लगे है हम,
किस्सा सुनो मेरा, और, पागल करार दो,
खुद के लिखे ख़त खुद से, छिपाने लगे है हम
--------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
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मंगलवार, 13 मार्च 2012
दिल्ली के जंतर मंतर पर..........
मित्रो, काफी दिनों से कुछ नया नहीं लिख पा रहा हूँ, पर ऐसा नहीं की मैं आपको निराश करूँगा.. वो क्या है ना फेसबुक पर कई मित्रो ने कहा की समाज सेवा फेसबुक पर करते हो, एंड ब्ला ब्ला ब्ला, अब उन नादानों को कौन समझाए की हम करीब ३ साल से जमीनी लड़ाई लड़ रहे है सामाजिक मंचो पर जाकर, संस्थाओं से जुड़ कर, कभी वक़्त निकाल कर जानने की कोशिश नहीं की हमारे बारे, और बस मन में आया दे डाला कमेन्ट, बिना ये सोचे की ये बात किसी के दिल को कितना आघात पंहुचा सकती है, चलिए जाने दीजिये, भारत स्वाभिमान और अन्ना हजारे के मंच से लेकर एक नये मंच श्री गोविन्दाचार्य जी से भी जुड़ते हुए, अपनी सामजिक जीवन में एक नया अध्याय जोड़ने की कोशिश में दिल्ली के जंतर मंतर पर एक नयी कविता के साथ आपके बीच, मुद्दा था ग्राम पंचायत को केन्द्रीय बजट के सात प्रतिशत मिले... आशा है आपका प्यार इस नयी रचना पर जरूर बरसेगा
कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
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शुक्रवार, 9 मार्च 2012
रास्ट्रीय कवि संगम की तरफ से
अभी होली के शुभ अवसर पर मुझे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री(वर्मा साहब) के निवास पर फिन्स द्वारा रखे गए कवि सम्मलेन में आने का निमंत्रण मिला... फिन्स एक बहुत नामी संस्था है जो काफी समय से समाज सेवा में लगी हुई है,
वहा रास्ट्रीय कवि संगम की तरफ से कविगण आये हुए थे, मौका मिला उनका साथ काव्य पाठ का, ये प्रोग्राम आप सुदर्शन चैनेल पर भी देख सकते है......आपसे बाटंने का मन हुआ, आखिर आप लोग इतने मन से मेरे ब्लॉग पर आते हो, देखिये ना करीब 60,000 विसिट्स और 300 फोलोवर होना मजाक तो नहीं.... धन्यवाद आपके प्यार के लिए,..जितना प्यार मेरी पुरानी वाली विडिओ क्लिप को मिला उससे ज्यादा प्यार की आशा रखते हुए ये क्लिप आपके हवाले करता हूँ
कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना
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सोमवार, 5 मार्च 2012
कायनात छोटी पड़ गयी......
जमीन से लेकर आसमां तक निकलता गया आदमी,
जितना चढ़ा उतना ही फिसलता गया आदमी
कायनात छोटी पड़ गयी हवस के सामने
जितना मिला उतना ही निगलता गया आदमी
महलों को शातिरी से उसने जोड़ तो लिया
पर हाय! मोम सा पिघलता गया आदमी
गीदड़ की जात शेरो पर गरजती है जनाब
हैवानियत आसमान से बरसती है जनाब
आबाद है महल हर जालिम के "प्रभात"
आदमियत आशियाने को तरसती है जनाब
कवि प्रभात "परवाना"
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रविवार, 4 मार्च 2012
एक छोटी सी कोशिश..........
आज इस ब्लॉग के इतिहास में बहुत बड़ा दिन है, आज इस ब्लॉग में एक ऐसी पोस्ट को जोड़ा गया है जो आजतक की पोस्ट में से बहुत अलग है, ये एक इसी विडियो क्लिप है जिसमे मेरे द्वारे एक छोटी सी कोशिश की गयी है आज के एलेक्शन के सच को दर्शाने की, आज के भ्रष्ट नेताओं के दिल की बात, बच्चा बच्चा जानता है देश की वास्तविक स्थिति क्या है, पर जब यही बात एक कवि कहता है तो समा देखेने लायक होता है, इस क्लिप को देखे, अगर पसंद आये तो शेयर भी करे अपने फेसबुक पर, ट्विट्टर पर, ऑरकुट पर , जहा भी चाहे, लोगो से बाटे, विश्वास करता हूँ आपका प्रोत्साहन मिलेगा मेरी इस छोटी सी कोशिश को...............
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तड़प रहा है गुलशन.......
तड़प रहा है गुलशन, अब्र की तलाश में,
जैसे कफस पड़ा हो, कब्र की तलाश में,
एक छोटी सी खता ने असीर बना डाला
भटकता रहा मैं अब तक, जब्र की तलाश में
जल गयी जिंदगानी, खाने-ओ-कमाने में,
चल पड़ा हूँ अब मैं, सब्र की तलाश में..........
शब्दार्थ: अब्र:-बादल, कफस:-शरीर, असीर:-कैदी, जब्र:-कठनाइयां
-------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
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