तड़प रहा है गुलशन, अब्र की तलाश में,
जैसे कफस पड़ा हो, कब्र की तलाश में,
एक छोटी सी खता ने असीर बना डाला
भटकता रहा मैं अब तक, जब्र की तलाश में
जल गयी जिंदगानी, खाने-ओ-कमाने में,
चल पड़ा हूँ अब मैं, सब्र की तलाश में..........
शब्दार्थ: अब्र:-बादल, कफस:-शरीर, असीर:-कैदी, जब्र:-कठनाइयां
-------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
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