शनिवार, 12 मई 2012

दो दो कौड़ी के गुंडे है....


भारत की मिट्टी  कहती है, रो रो कर गाथाये जी,
सत्य अहिंसा के रस्ते को, हम तक अपनाए जी,

अब सच्चाई वाले दर्पण, हारे हारे लगते है,
घोर अहिंसा और पापो के, अब जयकारे लगते है,

कोई मर्यादा को भूले, संसद की दीवारों में ,
और लाठिया भांजी जाए , सत्य अहिंसा नारों पे


कुछ सत्ता में बहरे लगते, कुछ सत्ता में अंधे है,

गुप्त सूचना देने वाले, वर्ल्ड बैंक के बन्दे है,

न्यायपालिका कही बिकी है,नोटों की हरयाली पर
पूरा संसद मौन पड़ा है " डायन" वाली गाली पर

कुछ "दीदी" के भैया  है, कुछ "मम्मी जी" के प्यारे है,
दो दो कौड़ी के गुंडे है, जाहिल है, हत्यारे है ...............


------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
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