आओ मैं आपको अपनी कविता की क्यारी में ले चलू,
जहा मैंने चंद छोटे छोटे शेर बोये है,
जिन्हें मैं अपनी भावनाओं के जल से सीचूंगा
और कुछ दिनों में ये ग़ज़ल का रूप ले लेंगे
वहा दूर प्रतिभा की मिटटी में- मैंने कविता बोईं थी
जिन पर मंच माफियाओं की ऊँची अट्टालिकाओ ने
प्रसिद्धि का सूरज ना पड़ने दिया
और
अंतत: वे मुरझा गयी ..
पर मुझे अटल विश्वास है
उनके अहम् की आंधी उनकी ऊँची अट्टालिकाओ को जल्द ही जर्जर कर देगी
और मेरे गीत ग़ज़ल नगमो पर भी
किसी पारखी की नज़र पड़ेगी,
और मैं उन तमाम उपलभ्धियो को पा सकूँगा जिनका मैं अधिकार रखता हूँ .......
---------------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
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