मै तो अक्सर रोता रहता था,
दुःख सागर में खोता रहता था
कमरे की दीवारों से बतियाता
लोग कहे सोता रहता था,
दिल-ओ- चैन खोने लगा है,
ख़ुशी से पलके भिगोने लगा है,
लोग कहते है सपनो में चलता हूँ मै
शायद प्यार होने लगा है,
गुलाब पसंद क्यों आने लगे है,
खुदा में नजर वो क्यों आने लगे है,
धूप क्या पड़ी मेरे ऊपर जरा सी
लो काले से बादल क्यों छाने लगे है
जब से जगी है खुशी मेरे दिल में,गम मेरा रो रो के सोने लगा है,
लोग कहते है सपनो में चलता हूँ मैं,
शायद प्यार होने लगा है,राहो के मुसाफिर अपने से लगे है,
हालात है मानो सपने से लगे है,
मिला दे खुदा जल्दी अब सनम से
दोनों ही किनारे तड़पने लगे है,
इधर मेरा गिरेबाँ है भीगा खुशी से,
उधर उसका पल्लू भी रोने लगा है.,
लोग कहते है सपनो में चलता हूँ मैं
शायद प्यार होने लगा है
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
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