जो राहे है टेड़ी दुर्गम ,
पथरीली और वीरा निर्जन,
कांटो को मै ढाल बना कर
पकड़ पकड़ कर चलता हूँबोलो क्या उपचार करोगे
जी मै जल से जलता हूँ
सी सी कर ना घाव निहारो
देख लहू ना हिम्मत हारो
मेरा गम है मेरा दम है
देख दिशा मै आया चारो
नमक उठा कर घावो पर खुद हाथो से मलता हूँ
बोलो क्या उपचार करोगे , जी मै जल से जलता हूँ
कलम मेरी तकदीर बनाती
एक अनदेखी तस्वीर बनाती
जब जब आँख उठे दुश्मन की
कलम मेरी ही तीर बनाती
मिट्टी का गूदू आटा, पत्थर की मै दाल बनाता, जी मै ऐसे पलता हूँ
बोलो क्या उपचार करोगे , जी मै जल से जलता हूँ
जितनी बाधा आएंगी
वे सब हारी जाएंगी
जब जब कदम बढेगा मेरा
वे पत्ते सी थर्राएंगी
अभी तो ढंग से उदय हुआ ना, आप कहे मै ढलता हूँ?
बोलो क्या उपचार करोगे , जी मै जल से जलता हूँ
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
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