गुरुवार, 9 जून 2011

पानी पी के लौटा तो....

"ग़म मेरे मुक्कदर में, इतना बड़ा मिला ,
मेरी हालत पे खुदा तक, शर्म से गड़ा मिला
एक पत्ते पर आस टिकी थी मेरी,
पानी पी के लौटा तो, वो तक झड़ा मिला "

मेरा पैर बढ़ा ही था चलने के लिए,
सूरज हिला ही था ढलने के लिए,

उनका काजल आज ख़तम हुआ है यारो
मै तो कब से तैयार था जलने के लिए
 मै कब से तैयार था जलने के लिए .


ये रोग पुराना है..
 सबको आना जाना है,
 हमें तो दिल की बिमारी है,
 ये प्यार तो एक बहाना है.


मेरे पैरो से जमीन खरीद ली उसने ,
वो आज खुश है मुझे मौत देकर
एक मै था-उसे खरीद लिया खुदा से
फर्क क्या खुद बिक गया मोलभाव लेकर


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"  


2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया,,,

SARITA ने कहा…

re diwane diwangi samajh le, dilse dil ka nata kitni purani ye jan to le.. thoda jo jameen li tere paon ke nichese , bas umeed hai ki tere paon ki dhul hogi hi usme.. nahona khafa, na karna sikayat.. teri yaadon mein ek phool hun mein, na todna kabhi na hawa mein uda dena teri pyar ki ek boli hun mein.....


prabhat, lovely thought u carry.