गुरुवार, 30 जून 2011

जब परवाने जलते है

जब परवाने जलते है,
लोग आहे भरते है,
                    जब परवाने जलते है
                    जब परवाने जलते है..........
शम्मा कहती हाथ हिलाकर,
कभी इठलाकर, कभी बल्खाकर,
मत जल मेरे परवाने,
सुन शम्मा के दीवाने,
देखो खुद को छलते है,
                    जब परवाने जलते है....
जिस्म तेरा ये ख़ाक बनेगा,
जब शम्मा के साथ जलेगा...
एक पल में खो जाएगा,
इस दुनिया का क्या जाएगा...
जैसे सूरज ढलते है
                    जब परवाने जलते है...
सीख दे जाता है परवाना 
हर इंसान बस हो दीवाना
मंजिल ज्यादा दूर नहीं है,
मन इच्छा का नूर नहीं है..
बैरी आँखे मलते है,
                   जब परवाने जलते है..
                   जब परवाने जलते है 

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


1 टिप्पणी:

SARITA ने कहा…

KISMAT PE KYA RONA PARWANE, SAMMAKO CHHUA TOH JAL HI GAYA... KAISE BUJHAE SAMMA AB TUMHE, HAR AANG JISKI AAG KA GOLA.