शुक्रवार, 16 मार्च 2012

अंजुमन-ए-दिल ......


गेसुओ को उनके, सजाने लगे है हम,
आईने निहार कर, शर्माने लगे है हम,
तन्हाइयो से निकल, उनके दिल में बस गयें
अरे अब जाकर कही, ठिकाने लगे है हम

जूनून-ए-मोहब्बत, पूरी कायनात ने देखा,
जख्म खा कर भी, मुस्कुराने लगे है हम,

अल्फाज़ के जज्बात, कोई जान ना पाया
आब-ए-चश्म भर कर आँख में, दिखाने लगे है हम,

किस्सा सुनो मेरा, और, पागल करार दो,
खुद के लिखे ख़त खुद से, छिपाने लगे है हम

--------------------------कवि प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"



1 टिप्पणी:

Rahul Yadav ने कहा…

Waah.... behtareen rachna hai bhai