बुधवार, 28 मार्च 2012

नंगे पैरो चला परवाना......

खता भी खुद ही करते थे,वफ़ा भी खुद ही करते थे,
कभी वो रूठ कर रोये, कभी मैं रूठ कर रोया


एक तरफा प्यार का सुनो, इल्जाम ना देना
कभी वो टूट कर रोये, कभी मैं टूट कर रोया........


नंगे पैरो चला परवाना ,जब राह-ए-इश्क में,
कभी छाले फूट कर रोये, कभी मैं फूट कर रोया
कभी छाले फूट कर रोये, कभी मैं फूट कर रोया.......


-------------------------------प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 





2 टिप्‍पणियां:

R ने कहा…

Great Rhyming and Imagination.....

Ganesh ने कहा…

Ati sunder...

Dil ko chhu jane wali kavita hai...