वो मारते रहे पर रुला ना सके,
मुझे मौत की नींद सुला ना सके,उनकी आँखों का पानी बयाँ कर रहा है,
मुझे छोड़ तो दिया पर, भुला ना सके......
डाला ही डाली पर क्यों जवाब दीजिये,
जब प्यार से एक घडी भी झुला ना सके
नफरत थी या प्यार था उनका , खुद अचरज में हूँ,
मेरे नाम लेके तक, मुझे बुला ना सके
एक सौ का नोट जो दे गए थे तुम
हम खुद बिक गए, पर खुला ना सके
बुझ गयी चिता, चले गए सभी
वो ख़त खून वाले, जला ना सके
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
2 टिप्पणियां:
100 का नोट, माई गॉड?
Shaandaar...
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