कांटे जाल से जग में, पुष्प सा खिलता हूँ मै
जब सोती है दुनिया, अपनी रूह से मिलता हूँ मै
दुर्गम है राहे, भटक चुके कई
और हस के उसी पथ से निकलता हूँ मै
दुश्मन -ऐ-दोस्ती ना आप सा मिले
सपनो में भी सोच के हिलता हूँ मै
जो दे गए हो गम , गम नहीं मुझे
धागे है राहे, सुई है आशा, शौक से सिलता हूँ मै
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
5 टिप्पणियां:
badhiya rachna.
acchi abhivyakti hai
in kavitaoon ka sangrah chhapwaiye..bahut achchi hain..
Prabhat ji aap en rachnao ko kise or ko kiyu nhi lene deti ho
kya h ki aap jitna batoge na utna wo felta jayega
badhtii rehene ka naam hi zindegi hai. nice poem.
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