गुरुवार, 2 जून 2011

अपनी रूह से मिलता हूँ मै

कांटे जाल से जग में, पुष्प सा खिलता हूँ मै
जब सोती है दुनिया, अपनी रूह से मिलता हूँ मै

दुर्गम है राहे, भटक चुके कई
और हस के उसी पथ से निकलता हूँ मै

दुश्मन -ऐ-दोस्ती ना आप सा मिले
सपनो में भी सोच के हिलता हूँ मै

जो दे गए हो गम , गम नहीं मुझे
धागे है राहे, सुई है आशा, शौक से सिलता हूँ मै

प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


 

5 टिप्‍पणियां:

ana ने कहा…

badhiya rachna.

Rahul Yadav ने कहा…

acchi abhivyakti hai

बेनामी ने कहा…

in kavitaoon ka sangrah chhapwaiye..bahut achchi hain..

Dalpat Singh ने कहा…

Prabhat ji aap en rachnao ko kise or ko kiyu nhi lene deti ho
kya h ki aap jitna batoge na utna wo felta jayega

SARITA ने कहा…

badhtii rehene ka naam hi zindegi hai. nice poem.