रुहों की दुनिया से, ये आवाज आई है,
मत मर ऐ इंसां, यहाँ भी तन्हाई है,
मेरे बयाँ पर, मत यकीन कर
सुन ध्यान से, कब्रों की गवाही है,
जिन हुस्न की शमाओ से, जला जला है तू
ये कुछ रूहे भी, उनकी सताई है
ये झंकार वाले घुंघरू, कुछ कह रहे है सुन
ये जश्न नहीं इंसा, मातम की शहनाई है
चल फिर मना ले, रूठी जिंदगी को तू
पूछ हँस के सखा, बोल क्या रुसवाई है?
छोड़ उस पतंग को, जो हाथ ना लगी,
जा आगोश में भर ले, जो खिंची चली आई है
कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
2 टिप्पणियां:
Waah Waah.... behtareen likha humesha ki tarah... bahut khoob janab
वाह, प्रभात जी दिल को छू गई आपकी रचनाएं , हर कृति बस एक से बढाकर एक.
आज बहुत दिनों बाद ..........दिल को कुछ पढ़कर सुकून मिला है ...
क्या कहूँ कहने को अल्फाज़ ही नही बचे ...
बहुत खूब
---कुमार
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