जो दो चार यार हम जैसे पाले होते,
तो आज उनकी जिंदगी में भी उजाले होते,
चर्चा है बाजारों में, तेरे नाम का हुज़ूर,
गर वक़्त से संभलते तो, जुबान पर ताले होते,
सीरत आजमाते तो सूरत भूल जाते,
फर्क नहीं पड़ता गर हम काले होते,
मैं तेरी प्यास ना रखता, वफ़ा की आस ना रखता,
तो ना आज मेरे जिस्म पर ये छाले होते
महलो को छोड़कर, मेरे दिल में जो रहते,
तो हुज़ूर तेरे घर में जाले ना होते
जो दो चार यार, हम जैसे पाले होते,
तो आज उनकी जिंदगी में भी उजाले होते,
कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
1 टिप्पणी:
Bhai really bhaut shaandaar likha hai aapne....
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