तुम्हारे बदन से गुलाब की सी भीनी भीनी खुशबू मुझे मदहोश करती है, छु लेने को,
तुम्हारी उलझी उलझी सी जुल्फे कुछ मेरी उंगलियों में सिरहन सी पैदा करती हैं
तुम्हारी वो चंचलता मुझे झकझोर देती है, तुम्हारी हलकी सी खामशी मुझे तोड़ देती है,
वो तुम्हारा जल्दी जल्दी बाते करना, जी करता है बस देखता रहू तुम्हारे लबो की हलचल,
वो तुम्हारा रोज कल के वादे करना, मासूमियत से कल पर फिर मुकरना
जब मिलने आती हो वो पायल की बजती मीठी आवाज क्या कहू?
जब बात की शुरुवात करती हो, वो शुरुवात क्या कहू?
कुछ गुनगुनाती सी, हाय रब्बा वो साज क्या कहू?
वो बगिया के फूलो पर हाथ सा फेरती, मानो उन्हें पा जाने को आतुर
कभी बैठ कर वो घास के तिनके तोड़ती, मानो दिल की कुछ उलझन है बयाँ ना कर पायी हो,
मुझसे मेरा हाल पूछती हो तो बस ऐसा लगता है की कोई आग लगा कर फूक से बुझाना चाह रहा हो,
एक पल को मन में डर सा जाता हूँ, तुम चली जाओगी कुछ देर बाद,
बस निहारता रहू एक टक तुम्हे, तुम अपने किस्से कहती रहो, मैं उनमे समां जाऊ,
हर पल, मेरी हर ख़ुशी में तुम्हे साथ बाँध लू,
गर खुदा कबूल करे तो तुम्हारा साथ मांग लू
कभी दुनिया से डरता हूँ कभी तुम्हारे इनकार से डरता हूँ,
गर हाँ कहो तो फिर हाथ मांग लू....
गर हाँ कहो तो फिर हाथ मांग लू..
कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/
3 टिप्पणियां:
bahut hi bhavpurn rachana hai
Kya baat hai... anubhav sa jhalak raha hai
bhaavpurn abhivyakti, badhai.
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