मंगलवार, 22 नवंबर 2011

ठंडी हवा जब उसे छू कर जाती होगी.........


ठंडी हवा जब उसे, छू कर जाती होगी,
शायद उसे मेरी याद, आती होगी,
कितना भी नकार ले, दुनिया के डर से,
यकीन है मन ही मन मुझे, चाहती होगी.........

फूट पड़ते है, झरने पत्थरो से यकायक,
अश्क छुपाने को बारिश में, नहाती होगी.......

क्या फर्क आलम-ए-तन्हाई बसर का
मिले थे जिन बागो में, वहा जाती होगी.......

तकिये के गिलाफ में, मेरे ख़त सबूत है,
मेरे खूँ की लिखावट उसे रुलाती होगी.............

कौन करेगा हिफाज़त, तेरी जुल्फों की दिलनशी,
बंद कमरों में बस आईने, जलाती होगी..........

हारकर, थककर, रोकर, सुबककर, बेचारी,
मुझसे दूर तन्हा यु हीं सो जाती होगी..

कितना भी नकार ले, दुनिया के डर से,
उसे मन ही मन मेरी याद आती होगी

ठंडी हवा जब उसे, छू कर जाती होगी,
शायद उसे मेरी याद, आती होगी
शायद उसे मेरी याद, आती होगी 


                                    कवि प्रभात "परवाना"
वेबसाईट का पता:- http://prabhatkumarbhardwaj.webs.com/ 


5 टिप्‍पणियां:

neeraj kumar ने कहा…

very nice

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

bahut bahut bahut sundar kavita hai
lajawab..
apki achanaye to hamesha hi lajawab rahati hai...

संजय भास्‍कर ने कहा…

क्या खूब कही है आपने जिन्दगी ...हर शेर लाजबाब ....!

संजय भास्कर
आदत......मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

chitra jaideep ने कहा…

aap ismay pyar ka such likha hai wo bhawna jo sabka dil mai hoti wo dil jo tut jata hai

honey garg ने कहा…

bahut sundar kavita likhi h aapne bhai kya tareef karu koi sab nhi h kahne ko