उसके महल को देख कर ही समझ गया फिर किसी गैर को अपना चुकी है वो
मुझसे मंजूर ना था गरीबी की खातिर, किसी रहीस के आगोश में जा छुपी है वो ,
मिला उससे तो चेहरा पढ़ के समझा, मुझे छोड़ कर आज भी दुखी है वो
हार जाएगा मत खेल होली उसके संग, हजारो रंग मुझे दिखा चुकी है वो ,
विश्वास भी धोखा, वफ़ा भी धोखा, धोखा है जीना, मरना भी धोखा,
जाने क्या क्या सबक सिखा चुकी है वो ,
मेरे अश्को पे ना जा मेरे हमदर्द, खुश हूँ की मुझे छोड़ कर जा चुकी है वो
खुश हूँ की मुझे छोड़ कर जा चुकी है वो..........
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
2 टिप्पणियां:
niceeee.......kya dard hai...keep it up...likhta jaa
beautiful and heart touching lines ___ you are doing best Prabhat Ji
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