धरती की सारी लकड़ी लग जाएगी मेरी चिता बनाने के बाद ,
लता, फूल पत्ते सब ख़तम ,फिर चिता सजाने के बाद ,
ज्यादा कुछ नहीं, डर बस इतना है दोस्तों
कही सूरज ना बुझ जाए मेरी चिता जलाने के बाद
कही सूरज ना बुझ जाए मेरी चिता जलाने के बाद
ज्यादा कुछ नहीं, डर बस इतना है दोस्तों
कही सूरज ना बुझ जाए मेरी चिता जलाने के बाद
कही सूरज ना बुझ जाए मेरी चिता जलाने के बाद
लेकर बहा देना समंदर में अंश मेरा ,
गंगा ना सूख जाए मेरी राख बहाने के बाद,
ना बनाना, ना सजाना, ना जलाना चिता, पर दोस्तों
मुझे ना भूल जाना मेरे मरजाने के बाद मुझे ना भूल जाना मेरे मरजाने के बाद
"प्रभात" हूँ फिर आ मिलूँगा रात ढल जाने के बाद........जुगनुओ से मन क्यों बहलाते हो पागल
"प्रभात" हूँ फिर आ मिलूँगा रात ढल जाने के बाद
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना "
3 टिप्पणियां:
prabhat hoon fir aa milunga raat dhal jane k baad____ kya khoob kaha hai bhai _____ shandaar
prabhat bhai aise hi prabhat ki tarah hamare beech rehkar roshni dete rahiye.....
absolutely super imagination.
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