कल फिर उनसे सपने में मुलाकात हुई,
खुदा की महर हुई की उनसे बात हुई,
"आप कैसे हो" ये कहा मैंने और फिर इस तरह शुरुवात हुई,
मुख चंदा, बिदिया तारा, नैन झील पे सब वारा
केश वर्ण की बात कहू क्या, लगता जैसे रात हुई,
कल रात उनसे मुलाकात हुई,
मेघ पलक चल दूर तलक, कर सैर फलक,
मद्धम मद्धम सी खोल पलक मोती की बरसात हुई,
कल रात उनसे मुलाक़ात हुई,
कोमल अधर, बेचैन कर, हो ना सबर
क्या गढ़ा है तुमको खूब खुदा ने, उसकी मेहनत की दाद हुई
कल रात उनसे मुलाकात हुई,
तुमको सागर मैं कह देता पर सागर तो चुल्लू लगता था,
तुमको अम्बर मैं कह देता पर अम्बर तो उल्लू लगता था
कुदरत-की बक्शीश कहू या कुदरत की करामात हुई
कल रात उनसे मुलाकात हुई
खुदा की महर हुई की उनसे बात हुई
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
3 टिप्पणियां:
हर रात ऐसे ही बात होती रहे आपकी उनसे,
हमें हर सुबह ऐसी ही कविता पढ़ने को मिलती रहे
सही टैग का प्रयोग जरूर करें
अब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!
पाठकों पर अत्याचार ना करें ब्लोगर
A beautiful dream date___ and also beautifully explained in words___ awesome work really
तुमको सागर मैं कह देता पर सागर तो चुल्लू लगता था,
तुमको अम्बर मैं कह देता पर अम्बर तो उल्लू लगता था
कुदरत-की बक्शीश कहू या कुदरत की करामात हुई.....
bahut khoobsoorat...
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