चढ़ा मै तो सूरज भी ढलने लगे है
मेरी तर्रकी से जलने लगे है
बुला लेता अपनों को इस खुशी में,
पर अपनों के मायने बदलने लगे है,
उठ उठ के अक्सर सोते है वो,
आँखों को पानी से धोते है वो,
यकीं नहीं उन्हें इस पल पर,
आहे भर भर के रोते है वो,
बिम्ब निहारते है अक्सर पर,
शिरकत-ए-आईने बदलने लगे है,
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है,
बहुत कोशिशे हराने की की
बहुत कोशिशे लड़ाने की की
काटे बिछाए उन्होंने जब जब मैंने
कोशिशे कदम बढाने की की
कदम मेरे खू से सने देख कर
दुश्मन तक आँखे मलने लगे है,
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है,
जी सही कहा गुनेहगार हूँ मै
जल्दी है आपको इन्तजार हूँ मै,
बस अब खामोशी का इम्तहान ना लो
बोल उठा तो फिर ललकार हूँ मै,
रवैया मेरा कड़ा देखकर,
साजिशो को अपनी धरा देखकर
हद्द है वो संग मेरे चलने लगे है,
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है
बुला लेता अपनों को इस खुशी में
पर अपनों के मायने बदलने लगे है...
प्रभात कुमार भारद्वाज "परवाना"
6 टिप्पणियां:
......बेहद खूबसूरत शब्दों का संगम है इस अभिव्यक्ति में
बेहद खूबसूरत कविता.
prabhat ji
aap mere blog par aaye yah mere liye bahut hi khusi kibaat hai .main bhi pahli baar aapka blog dekh rahi hun.
bahut bahut hi badhiya likhte hain aap.aaj ke samay ke dour me aapki kavita behad hi sachchai ke kareeb hai.
bahut bahut badhai
dhanyvaad sahit poonam
poonam
बेहद खूबसूरत शब्दों का संगम है इस अभिव्यक्ति में| धन्यवाद|
blog pansand aaya bhai aapka ..
www.aatejate.blogspot.com
u write fantastical i must say...
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