वो जलाते रहे और मै जलता रहा
सिलसिला ना थमा यू ही चलता रहा
फ़ना कर खुशी मैंने दुःख को चुना,
कोई तो मेरा बता दो गुनाह
वो लुटाते रहे और मै लुटता रहा
वो जलाते रहे और मै जलता रहा
यू तो मेरे भी दीवाने थे
मै था शम्मा जी मेरे भी परवाने थे
जी जले थे सभी मेरे आगोश में,
पर रहा था खामोश तेरे होश में,
राहे थी गलत पर मै चलता रहा
वो जलाते रहे और मै जलता रहा
अब तो वीरानियो से हुई है सुलह,
हाथ थमा है सारी बाते भुला
आज न कोई आओ मेरी राह में,
मरना है आज जालिम तेरी बाह में,
सब फिसलता रहा हाथ मलता रहा,
वो जलाते रहे और मै जलता रहा
वो जलाते रहे और मै जलता रहा......
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
2 टिप्पणियां:
वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
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