यू ही जल जाता मै गर तूने देख लिया होता,
कुछ घबराकर, कुछ इतराकर, अपने मस्तक पे बल से डालकर
पल्लू फेर लिया होता,
यू ही जल जाता मै गर तूने देख लिया होता,
जी मै तो एक कट्पुतला था,
शायद मेरा मन उथला था,
जी लेता दो पल वो प्यार से,
कह लेता कुछ बात यार से,
आँखों से अपनी देख जरा
गर तूने सेक दिया होतायू ही जल जाता मै गर तूने देख लिया होता,
तेरे तो थे ठाट अनोखे,
जुल्फों के तूफानी झोखे,
मृत्यु से कुछ मांग रियायत
छोड़ के अपने शोक सियासत
अहम् बना जो तेरा दुश्मन
उसको फेक दिया होता,
यू ही जल जाता मै गर तूने देख लिया होता,
आँखे अपनी मूद के मै तो
पी के मोती बूँद के मै तो
मोहरा बन के साजिश का
भेष मै लेके आशिक का
शुरू किया क्यों खेल प्यार का,
शुरू में छेक दिया होता
यू ही जल जाता मै गर तूने देख लिया होता
यू ही जल जाता मै गर तूने देख लिया होता......
प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"
4 टिप्पणियां:
wow bahut achha hai yaar
aaj to mera tera blog padne ja man kar raha hai
Again a awesome composition by an awesome composer ____ nicely done Prabhat Ji
bhai hum aapke prasansak ban gaye
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