शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

एक रात उठ उठ कर रोया..........



एक रात उठ उठ कर रोया अपनी कहानी पे,
कभी दिल के दर्द पे, कभी आँखों के पानी पे,
लात मार कर मेरे बचपन को कुचल दिया जिसने,
सुबक सुबक कर रोया मै उस जवानी पे .......
घर से निकला दूर तलक ठंडी फिजा में
"प्रभात" को पुकारती एक अनकही दिशा में,
सोचा आज एक पत्ते पर लिखू अपनी कहानी,
पर पतझड़ के मौसम में, पीले पत्ते तक हवा बहा ले गयी,
और फिर सर पीट पीट कर रोया, मै अपनी इस भोली नादानी पे
एक रात उठ उठ कर रोया मै अपनी कहानी पे,
लात मार कर मेरे बचपन को कुचल दिया जिसने,
सुबक सुबक कर रोया मै उस जवानी पे
सुबक सुबक कर रोया मै उस जवानी पे .......


प्रभात कुमार भारद्वाज"परवाना"


3 टिप्‍पणियां:

Rahul Yadav ने कहा…

A best explanation of pain with deep emotions ___ really _____ excellent work again

om ने कहा…

awesome work prabhat bhai....


लात मार कर मेरे बचपन को कुचल दिया जिसने,
सुबक सुबक कर रोया मै उस जवानी पे .......

is line ne to sari jajbat jo halak me kahi fasi hui thi.....nikal kar rakh di.....

great bhai keep it up.....

mere jeevan ki kashti... ने कहा…

लात मार कर मेरे बचपन को कुचल दिया जिसने,
सुबक सुबक कर रोया मै उस जवानी पे.....likhte rahiye bhai aise hi...